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जीवन के बदलते रंग

 नमस्कार दोस्तो ! आज हम बात करने वाले है की कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन में धीरे धीरे जिम्मेदारियों के बीच घिरता चला जाता है। आज ऐसे बैठे बैठे मन में विचार आया कि बच्चा जब पैदा होता है तो  न ही किसी को जनता है न पहचानता है वो अपनी ही दुनिया में मस्त रहता है।फिर धीरे धीरे जैसे वो बढ़ता है लोगो को पहचानने लगता है लोगो को जानने लगता है लोग उस बच्चे को जानने लगते है। बच्चा और बड़ा हुआ तो उसके ऊपर अब पढ़ाई की जिम्मेदारी आने लगती है । अब जैसे ही वो कुछ और बड़ा हुआ तो १०वी की परीक्षा की जिम्मेदारी फिर १२वी की । जब एक बार १२ कर ली तो असली जिम्मेदारी अब सुरु होती है कि को से फील्ड को चुनना है ।फील्ड चुन कर पढ़ाई पूरी कर ली तो अब जिम्मेदारी अति है नौकरी की ।अब वो नौकरी कि जिम्मेदारी पूरी करने के लिए इधर से उधर भटकना सुरु। इस जिम्मेदारी को पूरा करते करते फिर एक जिम्मेदारी अति है की शादी की ।फिर इस जिम्मेदारी को पूरा करने के बाद जिम्मदरी अति है बच्चो की,........फिर जिम्मेदारी पर जिम्मेदार.......हमें तो पता ही नहीं चलता कि जीवन ने अपने रंग कब बदले और हम पूरी जिंदगी जी जाते है।